मेरे गांव मतेया खास के उस पीपल के पेड़ की छाया – एक सच्ची भूतिया घटना | Real Ghost Story in Hindi
लेखक: राम सैनी | श्रेणी: सच्ची भूतिया कहानियाँ (Real Horror Stories in Hindi)
क्या आप सच्ची भूतिया कहानियाँ पढ़ना पसंद करते हैं?
तो यह कहानी आपको जरूर डराएगी —
एक छोटे से गांव मतेया खास, गोपालगंज (बिहार) की “पीपल के पेड़ की छाया” की कहानी आज भी लोगों की रूह कंपा देती है। जब लोगों के बीच आज भी उसकी बात होती हैं उसकी पायल की आवाजें आज भी गलियों में सुनाई पड़ती हैं
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🕯️ शुरुआत — बचपन की वो रातें
मैं राम सैनी, आज आप सभी के सामने अपनी एक सच्ची और घटित घटना को लेकर आप सभी के बीच आया हूं जिसे सुनकर पढ़कर आप सभी के भी रूह कांप जाएगी
यह कहानी है मेरे गांव की — जिस गांव का नाम मातेया खास हैं जहां एक पुराना पीपल का पेड़ और डायनों का राज आज भी रहस्य बना हुआ है।
जब मैं छोटा था, करीब 4-5 साल का,
तो हर शाम 6 बजे के बाद गांव में गहरा सन्नाटा छा जाता था।
गांव की गलियाँ खाली, घरों के दरवाजे बंद —
जैसे अंधेरे से सब डरते हों।
रात को मैं अपनी मां से कहानियाँ सुनता था।
एक दिन उन्होंने कहा — तुम कभी भी
> “उस स्कूल वाले पीपल के पेड़ के पास कभी मत जाना,
वहाँ कुछ अच्छा नहीं रहता।” और वह पर भूत प्रेत रहते हैं
उस समय मैं बहुत ही छोटा था, इन बातों की मुझे कुछ भी समझ नहीं था।
पर मुझे क्या पता था, यही बात एक दिन मेरी जिंदगी का सबसे डरावना सच बन जाएगी। जिसे में शायद ही कभी भुला पाऊंगा
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⚰️ कब्रिस्तान, श्मशान और डर की छाया
हमारे घर से थोड़ी ही दूरी पर कब्रिस्तान और नहर के पास श्मशान घाट था जो आज भी वहीं है।
गांव के बुजुर्ग कहा करते थे
> “वो आत्मा आज भी भटक रही है, उसे शांति नहीं मिली।”
वह आत्म कोई और नहीं थी बल्कि गांव के द्वारा बुलाई गई उस चुड़ैल की थी जो आज भी एक रहस्य बनकर रह गई हैं
लोग 6 बजे के बाद घरों में बंद हो जाते थे। वेब
कहते थे, अगर कोई उस समय बाहर निकला या गलती से भी निकलने की कोशिश भी की तो वो उसे साथ ले जाती है।
मैं डर गया था, लेकिन सच जानने की जिज्ञासा मेरे मन में हमेशा रही। और में जब 6 साल का हुआ तो घर वालों के साथ बाहर रहने चला गया और ये बाते पुरानी होती गई और में इसे धीरे धीरे भूलता गया
🌧️ लेकिन वो रात — जिसने मेरी जिंदगी में सब कुछ बदल कर रख दिया
कई साल बाद जब मैं बड़ा हुआ और शहर से गांव लौटा,
तो मैंने वो सारी बातें भूल चुका था मुझे कुछ भी याद नहीं था
एक दिन मैं शाम को टहलने घर से बाहर निकला
और गलती से स्कूल के पास वाले पीपल के पेड़ के नीचे जा बैठा। जहां डायनों का बसेरा और उस चुड़ैल रहती थी ऐसा भी कि वो पूरे हमारे गए में रात को 6 बजे के बाद घूमती रहती थी
उस दिन हल्की फुल्की बारिश हो रही थी।
हवाएं बिल्कुल थम गई थीं उस अंधेरी रात में कुत्ते बोल रहे थे और अंधेरी काली रात चंद भी जैसे लाल हो गया था और बदलो में छिप रहा था ऐसा अनुभव हो रहा था
में पेड़ के नीचे बैठा ही था कि अचानक पायल की आवाज सुनाई देने लगी में डर सा गया और हिचकिचाते हुए बोला को को कौन है यहां और में डर कर वहां से जाने लगा
फिर तभी किसी ने कहा —
> “कहाँ जा रहे हो तुम?
इतने सालों बाद कोई ‘ मेरे पास चलकर आज खुद आया है,
अब में अपने आए हुए मेहमानों को ऐसे कैसे जाने दु
में तुम्हे अपने साथ ले जाना चाहती हूं और फिर क्या था
मैं डर से कांप उठा।
आवाज़ आई —
“ऊपर देखो…” ऊपर देखो
और जैसे ही मैंने ऊपर देखा —
एक काली छाया मेरे ऊपर झपटी।
उसके बाद कुछ याद नहीं।
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🌅 अगली सुबह — में सही सलामत घर लौट आया मैं
सुबह सुबह जब मेरी आँख खुली,
तो घर के बाहर लोगों की भीड़ थी।
कोई बोल रहा था
> “किस्मत अच्छी है इसकी,
नहीं तो आज ये यहां नहीं होता।” सब ऊपर वाले की कृपा हैं
मेरी माँ रो रही थीं —
वह कह रही थी कि “हनुमानजी की कृपा है कि मेरा बेटा आज मेरे पास में हैं ”
मुझे पता चला कि पिंटू भाई ने मुझे नहर के पास बेहोश पाया था। और उन्होंने गांव में आकर बताया कि नहर वाले श्मशान के पास एक लड़का हैं
गांव वालों ने मुझे घर लाकर संभाला।
जब मैंने बताया कि मैं पीपल के पेड़ के नीचे गया था,
तो सब लोग खामोश हो गए। जैसे उन्होंने कुछ ऐसा सुन लिया हो जो उन्हें नहीं सुनना चाहिए था
फिर कुछ देर बाद गौतम चाचा ने धीमे वा गहरी आवाज में कहा
> “वहाँ कोई शाम के बाद नहीं जाता…
वो जगह अब भी श्रापित है।” और वा आज भी उसका और उसके जैसे कई सारी चुड़ैल का बसेरा हैं
उस दिन के बाद मैंने कभी शाम ढलने के बाद
घर से बाहर कदम नहीं रखा।
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🕯️ आज भी वो साया ज़िंदा है
सालों बीत गए है
अब भी में गांव में ही रहता हूं
लेकिन जब भी आँखें बंद करता हूँ —
वो पेड़, वो साया, वो पायल की आवाज़ लौट आती है। और कहती हैं आओ मेरे पास
कभी-कभी सपनों में भी वही आवाज मुझे सुनाई देती है
> “फिर मिलेंगे… अगली चांदनी रात में…”
में तुम्हारा इंतजार कर रही हूं में तुमसे जल्दी ही मिलूंगी
में तुम्हे अपने साथ ले जाने के लिए फिर आऊंगी
आज भी मेरे गांव मतेया खास के लोग सूरज ढलते ही उस स्कूल के पास या उसके रस्ते से नहीं गुजरते हैं
नहीं उस पेड़ के पास जाते हैं
लोग कहते हैं
रात के सन्नाटे में अगर ध्यान से सुनो,
तो वो किसी का नाम पुकारती है उसके पेलो की आवाज आती हैं और गांव गलियों की सड़कों में आज भी पायल की आवाजें आती हैं
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🌲 एक ऐसा रहस्य जो आज तक नहीं सुलझा हैं
लोगों ने कई बार उस पेड़ को हटाने की कोशिश भी की है
लेकिन हर बार जिसने भी कुल्हाड़ी उठाई है
वो अगले दिन बीमार पड़ गया है या तो वह लोग कहीं चले गए
आज भी जब हवा चलती है, तो
तो उसकी पत्तियाँ अपने आप हिलती हैं और उसपर से अजीब तरह की आवाजें आती हैं कभी हंसने की
और लगता है जैसे कोई कह रहा हो —
> “मत आओ यहाँ…
ये जगह तुम्हारे लिए नहीं…”
नहीं तो जो भी मेरे पास आएगा में उसे भी छोडूंगी
पीपल का पेड़ आज भी वहीं खड़ा पर जस का तस खड़ा का खड़ा हैं
और उसकी शाखों पर वो साया अब भी इंतज़ार में है। की कब उसे मुक्ति मिलेगी
📌 निष्कर्ष (Conclusion)
यह कहानी सिर्फ एक भूतिया किस्सा नहीं हैं बल्कि यह मेरा सच्चा और खुद पर बीती अनुभव है,
जो मुझे आज भी यह सिखाता है कि
हर चीज़ की एक “सीमा” होती है और हमें कभी-कभी,
उसे लांघना हमारी समझ से बाहर होता है उर उसे लांघने पर हमारे साथ बुरा हो सकता हैं