यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित हैं हमारा मंच उन सभी लोगों के आवाजों को एक मंच देता हैं जिनकी आवाजें कही दब सी गई हैं
हमारा मंच “मेरा आवाज़ सब तक” उन सभी लोगों की आवाज़ बनने का प्रयास करता है,
जिनकी आवाजें समाज की भीड़ में कहीं दबकर रह जाती हैं।आज हमारी टीम पहुँची बिहार राज्य के गोपालगंज जिले के छोटे से गाँव मधु बेरिया में।
वहाँ हमारी मुलाकात हुई नौशाद अली नाम के एक ऐसे व्यक्ति से,
जिनकी कहानी सुनकर कोई भी भावुक हो जाएगा।
उनकी कहानी सिर्फ संघर्ष की नहीं, बल्कि आशा, ममता और मजबूरी की दास्तां है।
तो आइए, सुनते हैं नौशाद अली और उनकी माँ की दिल छू लेने वाली सच्ची कहानी।
नौशाद अली के घर पर नौशाद अली के साथ उनकी बूढ़ी और बुजुर्ग न रहती हैं वो कहती हैं कि हमारा दिनचर्या बहुत ही मुश्किलों से गुजरता है। वो कहती हैं कि जब उनका बेटा नौशाद लगभग 4 साल का था तो उनके पति ( नौशाद अली ) के पिता की एक अमानवीय घटना में मौत हो गई वो कहती हैं कि उसके बाद से हमारा खाना पीना सब मुश्किल से चल रहा था क्यू की अब हमारे पास कोई भी सहारा नहीं था जिससे hm अपनी दीचार्या चला सके क्यू की नौशाद के पिता ही एक मात्र इसे व्यक्ति थे जिनकी वजह से उनके घर की रोजी रोटी चलती थी वो कहती हैं कि हम लोग उस समय भी एक झोपडी में रहते थे और आज भी हम इसी झोपडी में हैं जब नौशाद के पिता की मृत्यु हुई तो न इनके पास खाने को कुछ था न रहने को अच्छी जगह न ही हमारे पास खेत हैं क्यू की हम लोग एक गरीब परिवार से हैं उस समय जैसे तैसे करके नौशाद को में कैसे भी पाल पोस के बड़ा कर दी लेकिन दुख हमारा पीछा खा छोड़ने वाला था।
वही हमने इनके पुत्र नौशाद अली से बात की
इनका कहना हैं कि हमारे पास न तो कुछ ज्याद खाने को हैं न पीने को पीने के नाम पर हैं तो सिर्फ पानी और खाने के नाम पर वही राशन का अनाज वो कहते हैं कि मेरी म का जीवन मेरे पिता के चले जाने के बाद बहुत ही दुखो में कटा मुझे आज भी याद हैं कि जब में 4 या 5 वर्ष का था मुझे जब भी भूख लगती थी तो में कहता था भोजपुरी में की ( माई हमारा भूख लगल बा कुछ खाए के दे ) मुझे आज भी वो दिन याद हैं कि घर में कुछ खाने को नहीं होता था होता था तो बस एक टुकड़ा रोटी या कुछ ( डाल भात और चोखा ) मेरी म खुद न खाकर मुझे खाने को दे देती
जब हमने उनकी नौशाद अली के पढ़ाई के बारे में पूछा तो उन्होंने हमें भोजपुरी अंदाज में बताया कि
हमर मई केहू तिया हमारा के 10 ले पढ़ावली ओकरा बाद हम कही कहीं काम करे जात रही और केहू तरह से 12 पास कैली
जब हमारी टीम ने उनकी ये बाते सुनी तो हमारे भी आको में आंसू की नमी आ गई इनका और इनकी मां का यह कहानी सच में ही बहुत ही संघर्ष भरा कहानी हैं
जब हमने उनसे उनके पढ़ाई के बाद काम के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया पढ़ाई के बाद मैने कई जगह काम करना चाहा लेकिन कोई भी मुझे अपनी इच्छा अनुसार काम नहीं मिला क्यू कि बिहार में काम की और रोजगार की बहुत ही कमी हैं
जब हमारी टीम ने पूछा कि अपने कही बाहर बिहार राज्य से बाहर जाकर काम की तलाश नहीं की
तो उनकी नौशाद अली की आँखें नमः हो गई उन्होंने कहा जिज्ञासा तो बहुत हैं मेरे अंदर की में भी कोई बाहर जा कर काम करूं और अपने मां के लिए एक पके का मकान बनाऊं लेकिन किया ही करूं शायद मेरी किस्मत ही ऐसी नहीं शायद भगवान ने हमारी किस्मत में ही संघर्ष लिखा हैं में कितने भी प्रयास कर ली लेकिन मुझे कुछ भी सफलता नहीं मिलती
हमने पूछा आप अपनी रोजी रोटी कैसे चलते हैं
तो ऊनी मा की आंखों में आशु थे और उन्होंने कहा बस गांव में ही किसी के भी घर पर जब नए घर में कार्य होता हैं तो में वह काम कर लेता हु और जब कही मेला लगल है तो वहां पर में छोटे मोटे खिलौने बेचकर कुछ कमा लेता हु और अपने घर का खर्चा पानी चलता हूं
जब हमने पूछा कि आप दिन का लगभग कितना कमा लेते हैं
तो उन्होंने कहा घर में लेबर मजदूरी का जम काम करता हूं तो दिन का 200 रुपया तक मिल जाया करता हैं वहीं कही कहीं 300 रुपया भी मिल जाता हैं
इन्होंने अंतिम शब्द में रोते हुए कहा
में भी चाहता हूं कि मेरा भी पका का मकान हो मेरी मां भी एक खुशहाली की जिंदगी जी सके लेकिन शायद भगवान ने हमारे जिंदगी में सिर्फ और सिर्फ संघर्ष ही लिखा हैं
और आखिर में वो रोने लगे।
आप और हम जानते हैं कि इस महंगाई में 6000 रुपए में कुछ भी नहीं होने वाला हैं लेकिन किया करे बिहार में एक तो रोजगार नहीं और गांवों में कुछ काम भी हैं तो बस अपनी रोजी रोटी ही चलाई जा सकती हैं
उनकी आँखों में आज भी सपने हैं —
एक घर का, एक बेहतर जीवन का और अपनी माँ की मुस्कुराहट का।
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🕯️ आखिरी शब्द
यह कहानी हमें सिखाती है कि
> “संघर्ष चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो,
उम्मीद कभी नहीं छोड़नी चाहिए।”
नौशाद अली जैसे लोग ही असली प्रेरणा हैं —
जो परिस्थितियों से हारकर नहीं, बल्कि हर दिन उनसे लड़कर ज़िंदगी जीते हैं।
✍️ समापन पंक्तियाँ
कभी किसी की मजबूरी पर मत हंसिए,
क्योंकि हर मुस्कुराते चेहरे के पीछे एक दर्द छिपा होता है।”
“नौशाद अली की कहानी सिर्फ आँसू नहीं,
बल्कि एक माँ-बेटे के प्यार और संघर्ष की मिसाल है।”
❤️ मेरा आवाज़ सब तक का संदेश
“मेरा आवाज़ सब तक” ऐसे ही लोगों की कहानियाँ दुनिया तक पहुंचाने के लिए समर्पित है।
अगर आप भी किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं,
जिसकी आवाज़ सुनी जानी चाहिए,
तो हमें ज़रूर बताइए।
हम चाहते हैं कि समाज ऐसे लोगों की मदद के लिए आगे आए,
क्योंकि एक छोटे से प्रयास से किसी की ज़िंदगी बदल सकती है।
रिपोर्टर टीम:
राम सैनी – संस्थापक एवं संपादक
आदित्य राज – एडिटर
आदिति वर्मा – रिपोर्टर, गोपालगंज (बिहार)
प्रिंस गुप्ता – वेबसाइट प्रबंधन