बिहार के बेतिया जिले का एक ऐसा गांव जहां आज भी लोग गन्ने और केले की खेती पर निर्भर है — हमारी टीम की ज़मीन से जुड़ी हुई राम सैनी की रिपोर्ट

रिपोर्ट — मेरा आवाज़ सब तक
स्थान — मुरादी गांव, बेतिया (बिहार)


बिहार का बेतिया जिला कई बातों के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां के मुरादी गांव की कहानी कुछ अलग है। गांव में कदम रखते ही ऐसा लगता है कि मानो धरती पर हरियाली की दो ही पहचान है — गन्ने के ऊँचे-ऊँचे खेत और केले के बड़े-बड़े पौधे।
हमारी टीम जब गांव के अंदर तक पहुंची तो एक बात साफ दिखी—यहां के अधिकांश लोग जीवन यापन के लिए केवल गन्ना और केला उगाते हैं।
इस बात ने हमारे मन में एक बड़ा सवाल पैदा किया:

“क्या वजह है कि यह गांव सिर्फ इन दो फसलों पर ही निर्भर है?”

इसी सवाल के जवाब की खोज में हमने गांव के कई घरों के दरवाजे खटखटाए, अलग-अलग किसानों से बात की और उनके अनुभवों को करीब से समझा।


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धान की खेती क्यों नहीं? किसानों ने बताया असली कारण

गांव के अनुभवी किसान ब्यास मलाह, जिनके पास वर्षों का खेती का अनुभव है, ने हमें सबसे पहले सच्चाई बताई।

उन्होंने कहा:

“हमारी जमीन दो तरह की है। कुछ खेत बहुत नीचे हैं, जहां बारिश का पानी भर जाता है। और कुछ खेत बहुत ऊँचाई पर हैं, जहां पानी टिकता ही नहीं। धान के लिए दोनों ही जमीन खराब है।”

वहीं दूसरी ओर, पास खड़े मिश्रा जी ने धान की खेती की मुश्किलों को और स्पष्ट किया।

उनके अनुसार:

“धान को पानी चाहिए, लेकिन इतना भी नहीं कि पूरा खेत डूब जाए। यहां बारिश के मौसम में पानी इतना भर जाता है कि पूरी फसल नष्ट हो जाती है। हर साल नुकसान झेलने से अच्छा है कि हम कोई और फसल उगा लें।”

इस बातचीत से हमें साफ समझ में आया कि मुरादी गांव की जमीन धान की खेती के अनुकूल नहीं है।
कभी पानी कम, तो कभी इतना ज्यादा कि पूरी फसल बह जाती है।



उच्च भूमि पर केले की खेती — अनुभव से सीखा हुआ विज्ञान

हमारी टीम ने यह सवाल भी पूछा कि जब ऊंची जमीन पर धान की खेती संभव हो सकती थी, तो वहां भी केला ही क्यों लगाया जाता है?

इस पर गांव वालों ने बेहद सरल लेकिन महत्वपूर्ण कारण बताया:

“केले को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। अगर पानी रुक जाए तो पौधा खराब हो जाता है। इसलिए हम केले को उन्हीं ऊंचे हिस्सों में लगाते हैं, जहां पानी नहीं रुकता।”

उन्होंने यह भी कहा:

“धान को लगातार पानी चाहिए, लेकिन इतना भी नहीं कि खेत डूब जाए। इसलिए ऊंची जमीन पर भी केले की खेती हमारे लिए सुरक्षित है।”

इस बात से स्पष्ट हुआ कि यहां की मिट्टी और जमीन की ऊंचाई के हिसाब से केला सबसे सुरक्षित और स्थिर विकल्प है।


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गन्ना — गांव की आर्थिक मजबूती का सबसे बड़ा आधार

गन्ना इस गांव की पहचान तो है ही, साथ ही किसान इसे सबसे भरोसेमंद फसल भी मानते हैं।
किसान बताते हैं:

“गन्ना पानी में भी खराब नहीं होता। चाहे बारिश कितनी भी हो जाए, गन्ना बचा रहता है। इसलिए हम इसे निश्चिंत होकर लगाते हैं।”

इसके अलावा, गांव से नजदीक ही मझौलिया शुगर इंडस्ट्रीज स्थित है।
किसान अपने तैयार गन्ने को सीधे वहीं बेच देते हैं।

गांव के शंकर शम्भू और कई अन्य किसानों ने कहा:

“गन्ना तैयार होने पर हम इसे चीनी मिल में बेच देते हैं। इससे हमारी साल भर की मेहनत का अच्छा लाभ मिलता है।”

अर्थात, गन्ना इस गांव की अर्थव्यवस्था का सबसे मजबूत स्तंभ है।



केले से होने वाली कमाई — गांव की दूसरी बड़ी उम्मीद

गन्ने के बाद केला इस गांव की दूसरी सबसे अधिक उगाई जाने वाली फसल है।
किसान उदय सैनी ने हमें बताया:

“केला तैयार होने पर हम इसे व्यापारियों को बेच देते हैं। आमतौर पर हमें अच्छी कमाई हो जाती है।”

हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि कुछ साल ऐसे होते हैं जब बारिश बहुत ज्यादा होने के कारण ऊंची जमीन भी पानी में डूब जाती है और केले के पौधे गिर जाते हैं।
इससे किसानों को नुकसान भी झेलना पड़ता है, लेकिन जोखिम धान की तुलना में कहीं कम है।



क्यों गन्ना और केला ही हैं गांव की रीढ़?

हमारी जांच और किसानों से बातचीत में जो बातें सामने आईं, उससे पता चलता है कि:

✔ जमीन की प्रकृति

कुछ जगह बहुत नीचे → पानी भर जाता है
कुछ जगह बहुत ऊपर → पानी रुकता नहीं

✔ धान की खेती का जोखिम

• ज्यादा पानी = फसल डूब जाती है
• कम पानी = उत्पादन नहीं
• हर साल नुकसान की संभावना

✔ केला

• कम पानी में तैयार
• ऊँची जमीन पर सुरक्षित
• जल्दी बाजार में बिक जाता है

✔ गन्ना

• बारिश से फसल का खतरा नहीं
• चीनी मिल पास में
• बिक्री की पक्की व्यवस्था
• अधिक लाभ

इन सभी कारणों ने मिलकर इस गांव को गन्ना और केले की खेती का केंद्र बना दिया है।


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गांव की जमीनी सच्चाई — मजबूरियां और समाधान दोनों मौजूद

मुरादी गांव के किसानों ने हालात से समझौता नहीं किया, बल्कि जमीन की प्रकृति और मौसम के अनुसार सही रास्ता चुना।
लेकिन चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं:

बारिश में जलभराव

सिंचाई की सीमित व्यवस्था

जमीन का असमान स्तर

फसलों को प्राकृतिक जोखिम

किसानों को तकनीकी सहायता की कमी


अगर इन समस्याओं पर सरकार और प्रशासन ध्यान दे, तो गांव के किसान अनेक फसलों की खेती कर सकते हैं।



निष्कर्ष: मुरादी गांव अपने हालात से लड़कर खड़ा है

इस रिपोर्ट से साफ होता है कि—

“किसान वही खेती करता है जो उसके लिए सबसे उपयुक्त और सुरक्षित हो।”

गन्ना और केला सिर्फ दो फसलें नहीं, बल्कि इस गांव की आर्थिक मजबूती, अभ्यास, अनुभव और मजबूरी — सभी को एक साथ दर्शाती हैं।

मुरादी गांव दिखाता है कि
सही चुनाव और हिम्मत से किसान कठिन परिस्थितियों में भी अपनी राह बना लेता है।




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