हाईवे पर मौत का खतरा! बक्सर-पटना NH पर यात्री फंसे, टोल चुकाने के बाद भी NHAI की 'झूठी' 1033 सेवा का खुलासा संतोष पाल की रिपोर्ट

Satya Kunj Samachar के साथ 

रिपोर्ट - संतोष पाल सिंह 

 बक्सर से पटना की ओर जा रहे एक यात्री संतोष पाल को उस समय गंभीर परेशानी का सामना करना पड़ा जब उनकी कार का टायर अचानक NH-922 पर फट गया। राष्ट्रीय राजमार्ग पर तेजी से गुजरते वाहनों, लंबे ट्रैफिक और खुले हाईवे के बीच किसी भी वाहन के रुक जाने का मतलब होता है जोखिम, असुविधा और तनाव। ऐसे में ड्राइवर ने तुरंत वही कदम उठाया, जो हर जिम्मेदार नागरिक उठाएगा—NHAI की आधिकारिक हेल्पलाइन 1033 पर कॉल करके सहायता मांगना।

Reporter Santosh Pal


कॉल तुरंत रिसीव की गई, और उन्हें भरोसा दिलाया गया कि “10 मिनट में टीम भेज रहे हैं।” यह सुनकर स्वाभाविक रूप से थोड़ी राहत मिली। लेकिन राहत ज्यादा देर तक नहीं टिक सकी। कुछ ही देर बाद जिस टीम की उम्मीद थी, उसी की तरफ से आया फोन निराशाजनक था। टीम ने साफ शब्दों में कह दिया—


“हमारे पास मैकेनिक की सुविधा नहीं है, हम मदद नहीं कर सकते।”


इस एक वाक्य ने पूरे सिस्टम पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया।


जब देशभर में हाईवे के नाम पर टोल प्लाज़ा बनाए गए हैं, टोल टैक्स बढ़ाए जा रहे हैं, और यात्रियों से हर फासले पर शुल्क लिया जाता है, तो फिर उनके लिए बुनियादी सुविधाएँ क्यों उपलब्ध नहीं हैं? यही सवाल आज NH-922 की इस घटना के कारण फिर सामने खड़ा हो गया है।



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यात्री की व्यथा: टोल टैक्स देते हैं, फिर भी सुविधा नहीं


जो यात्री पूरे भरोसे के साथ टोल प्लाज़ा पर पैसा देते हैं, वे यह उम्मीद करते हैं कि किसी भी आपात स्थिति में उन्हें तुरंत सहायता मिलेगी। यही एक टोल टैक्स का मूल उद्देश्य भी है—सड़क, सुरक्षा और सुविधाओं को बेहतर बनाना।


लेकिन जब टायर फटने जैसी सामान्य स्थिति में भी टीम मौके पर मौजूद नहीं हो, न मैकेनिक सुविधा मिले और न ही कोई व्यवहारिक समाधान, तो सवाल उठना लाज़मी है—

टोल टैक्स आखिर किस बात का लिया जा रहा है?

कई बार लोगों को हाईवे पर रात के समय वाहन खराब होने पर घंटों खड़े रहना पड़ता है। ऐसी स्थिति में 1033 नंबर मदद का एकमात्र भरोसा माना जाता है। लेकिन जब वही हेल्पलाइन कह दे कि “मदद उपलब्ध नहीं है”, तो इससे बड़ा सिस्टम फेल क्या हो सकता है?






NH-922 पर सुरक्षा का बड़ा सवाल


NH-922 बक्सर से पटना को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्ग है। यह सड़क उत्तर प्रदेश, बिहार और आसपास क्षेत्रों के हजारों यात्रियों की रोज़मर्रा की रूट है। इस मार्ग पर छोटे वाहन, ट्रक, बसें और भारी संख्या में यात्री गुजरते हैं।


ऐसे व्यस्त हाईवे पर किसी भी वाहन का अचानक रुक जाना बेहद खतरनाक साबित हो सकता है, खासकर तब जब हाई स्पीड में आ रहे वाहन साइड से गुजरते हों।


टायर फटने की घटना कोई दुर्लभ घटना नहीं, बल्कि किसी भी वाहन में कभी भी हो सकने वाली आम समस्या है। इसलिए मैकेनिक सुविधा देना हाईवे प्रबंधन की जिम्मेदारी है, न कि दया।



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1033 हेल्पलाइन: नाम है, सुविधा नहीं?


NHAI ने हाईवे पर यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा के लिए 1033 हेल्पलाइन शुरू की थी। इस नंबर का उद्देश्य है—


दुर्घटना की स्थिति में मदद


एंबुलेंस सेवा


क्रेन की सुविधा


सड़क पर फंसे वाहनों को सहायता


ट्रैफिक जानकारी


और बुनियादी आपात सहायता



लेकिन जब यह नंबर सिर्फ कॉल रिसीव करके आश्वासन दे और बाद में टीम कह दे कि सुविधा उपलब्ध नहीं, तो यह सिर्फ एक फॉर्मेलिटी बनकर रह गया है।


अगर सड़क पर फंसे यात्री को न मैकेनिक मिले, न क्रेन, न सहायता—

तो फिर 1033 नंबर का अस्तित्व ही क्या मतलब रखता है?



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यात्री की सुरक्षा के साथ सीधा खिलवाड़


हाईवे पर बने टोल प्लाज़ा लोगों से जो पैसा लेते हैं, वह सिर्फ सड़क उपयोग शुल्क नहीं होता। उसमें सुरक्षा, मेंटेनेंस और इमरजेंसी सेवाओं की लागत भी शामिल होती है। लेकिन जब ये सुविधाएँ जमीनी स्तर पर दिखती ही नहीं, तो यह यात्रियों की सुरक्षा के साथ सीधा खिलवाड़ है।


आज जिस आदमी का टायर फटा है, वह सुरक्षित बच गया—

लेकिन अगर गाड़ी रात में फटती?

अगर आसपास कोई मदद न मिलती?

अगर वाहन को पीछे से ट्रक टक्कर मार देता?


ऐसी घटनाएँ पहले भी कई बार हो चुकी हैं, और इस तरह की लापरवाही भविष्य में बड़े हादसों को जन्म दे सकती है।



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लोगों में बढ़ रही नाराजगी


इस घटना के सामने आने के बाद यात्रियों में गहरी नाराजगी देखी जा रही है। कई लोगों का कहना है कि:


हाईवे पर टोल बढ़ाया जा रहा है, लेकिन सुविधा घट रही है।


NHAI की हेल्पलाइन सिर्फ नाम की रह गई है।


सड़क पर फँसने के बाद मदद किसी आम नागरिक या स्थानीय लोगों से मिलती है, सिस्टम से नहीं।


इमरजेंसी सेवाओं को विज्ञापन में दिखाया जाता है, लेकिन असल में उपलब्ध नहीं होतीं।



यात्री यह भी कहते हैं कि हाईवे पर इतनी बड़ी व्यवस्था के बावजूद वास्तविक मदद न मिलना बेहद शर्मनाक है।



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क्या कहती है सरकारी गाइडलाइन?


सरकार और NHAI की गाइडलाइन साफ कहती है कि हर राष्ट्रीय राजमार्ग पर निम्नलिखित सुविधाएँ अनिवार्य होती हैं—


एंबुलेंस


क्रेन


पेट्रोलिंग वाहन


आपात मोबाइल वैन


प्राथमिक चिकित्सा


यात्री सुविधा केंद्र


मैकेनिक सहायता या रोडसाइड असिस्टेंस



अगर यह सुविधाएँ मौजूद नहीं हैं, तो यह सीधे-सीधे नियमों का उल्लंघन है।



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1033 हेल्पलाइन की विश्वसनीयता पर सवाल


यह पहली बार नहीं है जब 1033 नंबर पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कई यात्रियों ने सोशल मीडिया पर पहले भी शिकायत की है कि—


कॉल तो उठाई जाती है लेकिन असली मदद नहीं मिलती


टीम देर से पहुँचती है या पहुँचती ही नहीं


मैकेनिक सुविधा लगभग कहीं उपलब्ध नहीं


समस्याओं को "हम सक्षम नहीं हैं" कहकर टाल दिया जाता है



इस घटना ने एक बार फिर इस हेल्पलाइन को केवल औपचारिकता साबित कर दिया है।



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यात्री की मांग: जाँच हो और सुधार हो


इस घटना से परेशान होकर पीड़ित यात्री ने परिवहन मंत्रालय और NHAI से मांग की है कि—


NH-922 पर हुई लापरवाही की तुरंत जाँच की जाए


1033 हेल्पलाइन को मजबूत बनाया जाए


मैकेनिक सहित सभी रोडसाइड असिस्टेंस सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ


टोल पर लिए जा रहे टैक्स का सही उपयोग सुनिश्चित किया जाए


यात्री सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए


टीमों को जिम्मेदारी से काम करने के निर्देश दिए जाएँ



यह मांग पूरी तरह जायज़ है, क्योंकि हाईवे पर किसी की जान बचाने या सुरक्षा सुनिश्चित करने में ये सेवाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।



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आम यात्री का भरोसा टूट रहा है


भारतीय सड़कें विश्वस्तरीय बनने के दावे तो करती हैं, लेकिन सुविधा और सुरक्षा के मामले में अभी भी कई खामियाँ हैं।

लोग कहते हैं:


“हम सुविधा के नाम पर पैसा देते हैं, लेकिन सुविधा मिलती नहीं।”


“अगर हाईवे पर मदद नहीं मिलेगी, तो टोल देने का क्या फायदा?”


“हेल्पलाइन का नंबर तो है, पर सेवा का भरोसा नहीं।”



यही कारण है कि आम जनता का भरोसा धीरे-धीरे टूट रहा है।



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सरकार को क्या करना चाहिए?


इस घटना से सरकार और विभागों को कई अहम कदम तुरंत उठाने चाहिए—


1. रोडसाइड असिस्टेंस टीमों की क्षमता बढ़ाई जाए



2. हाईवे पर उपलब्ध सुविधाओं की साप्ताहिक समीक्षा हो



3. 1033 हेल्पलाइन पर कार्यरत कर्मचारियों को बेहतर प्रशिक्षण दिया जाए



4. हर टोल प्लाज़ा पर वास्तविक सेवाओं का बोर्ड लगाया जाए



5. मैकेनिक और टायर सहायता अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराई जाए



6. लापरवाही पर जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई हो




ऐसे सुधारों से भविष्य में किसी यात्री को परेशानी नहीं होगी।



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अंत में—यात्री की सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए


हाईवे का निर्माण सिर्फ सड़क बनाने तक सीमित नहीं है। असली ज़िम्मेदारी तब शुरू होती है जब यात्रियों की सुरक्षा, सुविधा और सेवा की कसौटी पर सिस्टम खरा उतरता है।


NH-922 पर हुई यह घटना बताती है कि अभी बहुत सुधार की जरूरत है।

जब तक हेल्पलाइन, टोल सेवाएँ और रोडसाइड असिस्टेंस ठीक तरह से काम नहीं करेंगे, तब तक यात्रियों की सुरक्षा अधूरी ही रहेगी।


पीड़ित यात्री सही कहते हैं कि—


“अगर बुनियादी सुविधा ही नहीं मिलती, तो टोल टैक्स क्यों वसूला जा रहा है?”


इसी सवाल का जवाब NHAI को जल्द देना होगा।

यात्रियों की सुरक्षा कोई विकल्प नहीं—यह अधिकार है, और इस अधिकार का सम्मान होना ही चाहिए।


डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस खबर में उल्लेखित सभी जानकारी, बयान और विवरण संबंधित यात्री द्वारा बताए गए अनुभव, उपलब्ध तथ्यों और प्राप्त सूचनाओं के आधार पर तैयार किए गए हैं। हमारा उद्देश्य केवल घटना को निष्पक्ष रूप से पाठकों तक पहुँचाना है। इस रिपोर्ट का मकसद किसी संस्था, विभाग, एजेंसी, व्यक्ति या संगठन की छवि को नुकसान पहुँचाना नहीं है।


हम यह स्पष्ट करते हैं कि—


खबर में बताई गई स्थितियाँ उस समय की परिस्थिति पर आधारित हैं।


किसी भी विभाग, सेवा या हेल्पलाइन से संबंधित वास्तविक स्थिति में बदलाव संभव है।


पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले संबंधित सरकारी विभाग या आधिकारिक स्रोत से पुष्टि कर लें।


यह रिपोर्ट केवल जनहित, जागरूकता और सूचना साझा करने के उद्देश्य से प्रकाशित की गई है।



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